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पँचमहाभूतों की प्रकृति

सेहत के पांच तत्व
बहुत अधिक साफ-सफाई व हाइजीन का खुमार हमें प्रकृति से दूर ले जा रहा है। इसके नतीजे भी सामने हैं। हालांकि कम उम्र में जीवनशैली से जुड़े रोगों से आजिज आ चुके लोग एक बार फिर प्रकृति की ओर लौट रहे हैं। प्राकृतिक चिकित्सा, ग्रीन थेरेपी आदि के रूप में एक बड़ा बाजार भी बन गया है। प्राकृतिक तत्वों से जुड़कर कैसे रखें अपने तन और मन को स्वस्थ, बता रही हैं शमीम खान

मानव शरीर पांच तत्वों से बना होता है; मिट्टी, पानी, अग्नि, वायु और शून्य। इन्हें पंच महाभूत या पंच तत्व भी कहा जाता है। ये सभी तत्व शरीर के सात प्रमुख चक्रों में बंटे हैं। सात चक्र और पांच तत्वों का संतुलन ही हमारे तन व मन को स्वस्थ रखता है। इन पांच तत्वों का उल्लेख हमारे वेदों में तो है ही, पश्चिमी विद्वानों ने भी सेहत के लिए इनकी भूमिका को स्वीकार किया है।

पांचवीं सदी के महान ग्रीक चिकित्सक हिप्पोक्रेट्स ने कहा था कि किसी व्यक्ति की सेहत शरीर के चार द्रवों के संतुलन पर निर्भर करती है, जो प्राकृतिक तत्वों वायु, जल, अग्नि और पृथ्वी के अनुरूप होते हैं।

पांच तत्वों का संतुलन है जरूरी
किसी एक तत्व पर नहीं, पांचों तत्वों में संतुलन बनाकर ही आप अच्छी सेहत पा सकते हैं। प्रकृति के ये पांच तत्व हमारे शरीर के निर्माण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

मिट्टी: पृथ्वी या मिट्टी, हमारे शरीर के उन अंगों के निर्माण से जुड़ी है, जो कठोर और भारी हैं। जैसे हड्डियां, दांत, मांस, त्वचा, बाल, मूंछें, नाक आदि।
अग्नि: अग्नि उन अंगों के निर्माण के लिए आवश्यक है, जो गर्म और तीव्र प्रकृति के हैं। दृष्टि, नजर, शरीर की ऊष्मा, तापमान, रंग, चमक, क्रोध, साहस आदि।
जल: यह तत्व उन अंगों के निर्माण के लिए जरूरी है, जो तरल, मुलायम, ठंडे और चिकने होते हैं, जैसे लिम्फ, रक्त, मांसपेशियां, वसा, कफ, पित्त, मूत्र, सीमन, बॉडी फ्लूइड व जीभ आदि।
वायु: यह उन तत्वों के निर्माण के लिए जरूरी है, जिनकी प्रकृति सूखी और हल्की होती है। यह तत्व शरीर की गति और मूवमेंट्स से भी जुड़ा है, जैसे गति, नाड़ी, सभी संवेदी और तंत्रिका संबंधी गतिविधियां, श्वसन, आंखों का खुलना और बंद होना आदि।
आकाश: यह उन तत्वों के निर्माण के लिए जरूरी है, जो हल्की और सघन प्रकृति के होते हैं। यह दो अंगों को एक दूसरे से अलग करता है और उनके बीच खाली स्थान का निर्माण करता है, जैसे रक्त नलिकाएं, मांसपेशियां, टेंडन और मुलायम ऊतक।

मिट्टी
जितना हम आधुनिक जीवन जी रहे हैं, उतना ही मिट्टी से दूर होते जा रहे हैं। खासतौर पर बड़े शहरों में बच्चों को धूल-मिट्टी से बचाने के लिए उन्हें बाहर नहीं खेलने दिया जाता। माता-पिता रोगों का हवाला देते हुए बच्चों को मिट्टी में खेलने से मना कर देते हैं। जबकि सच यह है कि मिट्टी हमें बीमार नहीं बनाती, बल्कि कई रोगों से दूर रखने में सहायता करती है। प्रदूषण रहित मिट्टी में कुछ बैक्टीरिया जैसे माइक्रोबैक्टीरियम वैक्कई और लैक्टोबेसिलस बुलगारिकस आदि होते हैं, जो हमारे इम्यून तंत्र, मस्तिष्क की कार्यप्रणाली और मूड पर अच्छा असर डालते हैं।

अपने घर में छोटा सा बगीचा या किचन गार्डन, टेरेस गार्डन बनाना या इनडोर प्लांट्स लगाना, प्रकृति के करीब ला सकता है। इससे मिट्टी के संपर्क में रहेंगे और शुद्ध हवा भी मिलेगी।

मड बाथ
मड यानी मिट्टी, एक प्राकृतिक तत्व है, जो सेहत पर अच्छा असर डालती है। यह शरीर को आराम देती है, ठंडक पहुंचाती है। लंबे समय तक नमी को रोककर रख सकती है। गर्मियों में त्वचा संबंधी कई समस्याएं हो जाती हैं, जिनमें मड थेरेपी बहुत कारगर है। इससे त्वचा से जुड़ी समस्याएं नहीं होतीं और त्वचा को ताजगी और पोषण भी मिलता है। पेट की समस्याओं में भी कई तरह की मिट्टी का लेप किया जाता है।

आप चाहे तो घर पर ही मड बाथ ले सकते हैं। किसी आयुर्वेदिक स्टोर से आपको काली मिट्टी, मुल्तानी मिट्टी या समुद्री मिट्टी मिल जाएगी। बहुत सारे स्पा और मसाज सेंटर भी मड बाथ उपलब्ध कराते हैं। वह अपने क्लाइंट की जरूरत के अनुसार मड बाथ देते हैं।
मड थेरेपी के लाभ
मिट्टी एक प्राकृतिक तत्व है, इसमें कई धातुएं होती हैं, जिनका मानव शरीर पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
मिट्टी का लेप मांसपेशियों का तनाव कम करता है। इससे रक्त संचार में सुधार होता है।
मेटाबॉलिज्म दुरुस्त होता है, जिसका पाचन-तंत्र पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। पाचन रोगों में आराम आता है।
दर्द और सूजन में राहत मिलती है।
इससे बालों और त्वचा को नमी मिलती है।
मुंहासे ठीक होते हैं। ब्लैक हेड्स की समस्या दूर होती है।

अग्नि
अग्नि कहें या ऊष्मा तत्व, हमारे शरीर को कई कामों के लिए इसकी जरूरत होती है। इसका प्राकृतिक स्रोत है सूर्य। जो हार्मोन हमारी नींद प्रक्रिया को नियंत्रित करता है, उस पर सूर्य के प्रकाश का सीधा प्रभाव होता है। कई अध्ययनों में यह बात सामने आयी है कि नियमित आधे घंटे गुनगुनी धूप सेंकना हमारे हृदय, रक्त दाब, मांसपेशियों की शक्ति, इम्यून तंत्र की कार्य प्रणाली और कोलेस्ट्रॉल के स्तर को सामान्य बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। लेकिन गर्मी में ज्यादा देर तेज धूप में रहने से दिमाग में ऑक्सीजन का स्तर प्रभावित होता है, जिससे सिरदर्द होता है और चक्कर आने लगते हैं।

शरीर में ऊष्मा की मात्रा कम होने से हृदय रोगों, स्ट्रोक, तंत्रिका तंत्र संबंधी समस्याओं की आशंका बढ़ जाती है। मांसपेशियां कमजोर हो जाती हैं। जठराग्नि मंद पड़ने से पाचन-तंत्र गड़बड़ा जाता है। यही कारण है कि सर्दियों में शरीर में ऊष्मा का सामान्य स्तर बनाए रखने के लिए सूर्य की धूप के साथ अदरक, लहसुन, काली मिर्च, हल्दी, हरी मिर्च आदि गर्म तासीर वाली चीजों पर जोर दिया जाता है। गर्मियों के मौसम में शरीर में ऊष्मा तत्व बढ़ जाता है। यही वजह है कि तरल पदार्थ, हल्का भोजन, कच्ची सब्जियां और फल अधिक मात्रा में लेने की सलाह दी जाती है।

सन बाथ
अगर धूप बहुत तेज नहीं है तो एक से डेढ़ घंटे तक सूर्य की धूप का सेक न केवल सुरक्षित है, बल्कि सेहत के लिए जरूरी भी है। इससे हड्िडयों को मजबूती देने वाला विटामिन डी मिलता है । कुछ देर धूप में बिताना मूड पर भी सकारात्मक असर डालता है।
सूरज की रोशनी मांसपेशियों को पोषण प्रदान करती है।
सूरज की रोशनी दांतों और बालों के लिए भी फायदेमंद है।
फेफड़ों और किडनी पर भी अच्छा असर पड़ता है।
उच्च रक्तदाब में भी आराम मिलता है।
सूरज की रोशनी त्वचा रोगों में भी फायदेमंद है। विशेषज्ञों की देख-रेख में सन बाथ लेने से फफोले, घाव आदि तेजी से ठीक होते हैं।
गर्भावस्था के दौरान नियमित रूप से सन बाथ लेने से थकान, कमर दर्द, जी मिचलाना जैसी समस्याओं से छुटकारा मिलता है।

आकाश
आकाश को शून्य तत्व भी कहा जाता है। बहुत अधिक व्यस्तता और 24 घंटे तकनीक से जुड़े रहना, हमारे तन व मन पर भारी पड़ रहा है। हम अपने मन को खाली ही नहीं छोड़ते। यही रोगों के बढ़ने की सबसे प्रमुख वजह है। हमें कुछ समय ऐसा निकालना होगा, जब हम अपने शरीर और मस्तिष्क को बिल्कुल खाली छोड़ दें। स्वस्थ रहने के लिए चिंता और तनाव से मुक्ति जरूरी है। ध्यान से तन और मन दोनों नई ऊर्जा से भर जाते हैं और मस्तिष्क भी शांत हो जाता है। यह शरीर का संतुलन बनाने के लिए बहुत जरूरी है। कई अध्ययनों में यह बात भी सामने आई है कि ध्यान करने से एलर्जी, उत्तेजना, दमा, कैंसर, थकान, हृदय संबंधी रोगों, उच्च रक्तदाब और अनिद्रा में आराम मिलता है।

जल
जल हमारे शरीर का प्रमुख रासायनिक तत्व है। हमारे शरीर के भार का 60 प्रतिशत हिस्सा इसी से बना है। शरीर का प्रत्येक सिस्टम इससे जुड़ा है। कोशिकाओं तक पोषक तत्वों को पहुंचाना, कान, नाक और गले के ऊतकों को नमी वाला वातावरण उपलब्ध कराने का काम जल तत्व का ही है। शारीरिक तापमान और क्रियाओं को संतुलित रखने के साथ-साथ शरीर से टॉक्सिन को बाहर निकालने, शरीर को ऑक्सीजन प्रदान करने में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका होती है।

ध्यान यह भी रखें कि पानी कोई हेल्थ टॉनिक नहीं है, ना ही हर समस्या का उपचार। बहुत अधिक मात्रा में लेने से भी कई समस्याएं हो सकती हैं। किडनी से जुड़ी कई समस्याओं में कम और धीरे-धीरे पानी पीने की सलाह दी जाती है। पानी बहुत पीने से पोषक तत्व शरीर से जल्दी बाहर निकल जाते हैं। इसी तरह सुबह उठकर एक साथ ढेर सारा पानी पीने से आंखों पर भी दाब पड़ता है। विशेषज्ञों का मानना है कि महिलाओं को प्रतिदिन करीब ढाई लीटर और पुरुषों को तीन लीटर पानी पीना चाहिए।

हाइड्रो थेरेपी
पानी अलग-अलग तापमान पर अलग-अलग विशेषताएं प्रदर्शित करता है। अलग-अलग तापमान का पानी पीने से भी शरीर पर अलग असर पड़ता है। हाइड्रोपेथी में वो सभी पद्धतियां सम्मिलित हैं, जिनमें जल का उपयोग चिकित्सकीय उपचार के लिए किया जाता है, जैसे आइस पैक्स, ठंडे पानी की पट्िटयां, हॉट बाथ, कोल्ड बाथ आदि। शिकागो विश्वविद्यालय में हुए अध्ययन में यह बात सामने आई है कि अगर हम तनाव में हैं तो गुनगुने पानी से भरे टब या बाथ टब में खुद को आधे घंटे के लिए डुबाना राहत देता है। इससे तंत्रिका तंत्र का संतुलन पुन: स्थापित होगा और तनाव कम हो जाएगा। गर्म पानी मांसपेशियों को आराम पहुंचाता है, इससे पसीना निकलता है और इसका इस्तेमाल आथ्र्राइटिस, खराब संचरण तंत्र को ठीक करने के लिए किया जाता है। कोल्ड वॉटर हाइड्रोथेरेपी का इस्तेमाल त्वचा और उसके नीचे स्थित मांसपेशियों में रक्त संचरण को सक्रिय रखने के लिए किया जाता है। ठंडे पानी की पट्िटयां बुखार को कम करती हैं और सिरदर्द में आराम पहुंचाती हैं। अनिद्रा की समस्या है तो सोने से 15 मिनट पहले पैरों को गुनगुने पानी में डुबाना तनाव कम करता है। नींद अच्छी आती है।

इसे एक्वेटिक थेरेपी के नाम से भी जाना जाता है। इसमें गर्म पानी में एक्सरसाइज की जाती है। गर्म पानी के विशेष गुणों के कारण कड़े और फूले हुए जोड़ों की मूवमेंट्स में सुधार आता है और कमजोर मांसपेशियां मजबूत होती हैं।

वायु
हमारा शरीर कोशिकाओं से बना होता है और हवा (ऑक्सीजन) के बिना कोशिकाएं जीवित नहीं रह पातीं। शरीर के सुचारू ढंग से काम करने के लिए जरूरी है कि हमारा श्वसन तंत्र ठीक से काम करे। अगर पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं मिलेगी तो भोजन का ऑक्सीडेशन नहीं होगा और न ही ऊर्जा रिलीज होगी।

ब्रीदिंग एक्सरसाइज
इस तकनीक में गहरी सांस ली जाती है। फेफड़ों को फुलाने के लिए डायफ्राम की मांसपेशियों का उपयोग किया जाता है। इसका उद्देश्य होता है कि आप धीमी सांस लें और अधिक से अधिक ऑक्सीजन शरीर के अंदर ले जाएं। कंधे, गर्दन और छाती के ऊपरी भाग की मांसपेशियों का उपयोग कम से कम करें, ताकि अधिक प्रभावकारी तरीके से सांस ले सकें। इसके अलावा अनुलोम-विलोम, प्राणायाम, डीप ब्रीदिंग और दूसरी योग मुद्राएं फेफड़ों की सेहत के लिए अच्छी रहती है।

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सौजन्य: हिंदुस्तान पत्र

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By Hastamudraexpert

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