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जन्मपत्रिका में मांगलिक योग विवेचना

♦️जन्मकुण्डली द्वारा मांगलिक योग विचार👇🏼👇🏼
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जब भी विवाह के लिए वर-वधु की कुंडली का मिलान किया जाता है तब मांगलिक योग पर भी विचार किया जाता है।मांगलिक योग वैवाहिक जीवन के लिए अशुभ माना जाता है।
🔸जन्मकुंडली में जब मंगल लग्न, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम तथा द्वादश भाव में बेठा होता है तब कुंडली मांगलिक बन जाती है।
🔸जन्मकुंडली का सप्तम भाव विवाह और वैवाहिक जीवन का भाव होता है।
🔸जन्मकुंडली के 12 भावो में से 5भावो प्रथम, चतुर्थ, सप्तम,अष्टम तथा द्वादश भाव में से किसी भाव में मंगल हो तो जातक या जातिका मांगलिक बन जाते है।इसका कारण यह है लग्न में बैठकर मंगल अपनी सप्तम दृष्टि सप्तम भाव को देखता है, चतुर्थ भाव में बैठकर अपनी चतुर्थ दृष्टि से सप्तम भाव को देखता है और सप्तम में बैठकर स्वयं सप्तम भाव पर अपना प्रभाव डालता है,
🔸स्वयं की जन्मकुंडली का द्वितीय भाव जीवनसाथी की आयु का भाव होता है क्योंकि सप्तम भाव से द्वितीय भाव अष्टम भाव होता है यहाँ अष्टम भाव में बैठकर मंगल अपनी सप्तम दृष्टि से जीवनसाथी के आयु भाव जन्मकुंडली के द्वितीय भाव को देखकर जीवनसाथी की आयु को प्रभावित करता है।द्वादश भाव में बैठकर मंगल अपनी अष्टम दृष्टि से सप्तम भाव को देखकर सप्तम भाव को प्रभावित करता है इस कारण इन उपरोक्त भावो में मंगल के होने से कुंडली मांगलिक बन जाती है।ज्योतिषशास्त्र के अनुसार मांगलिक कुंडली वाले जातक-जातिकाओ का विवाह मांगलिक कुंडली वाले जातक-जातिकाओ से किया जाना ही ठीक होता है। दाम्पत्य जीवन पर मंगल अपना अशुभ प्रभाव जब अधिक डालता है जब उसे शनि राहु केतु का या इनमे से किसी एक का सहयोग और मिल जाये या मंगल के साथ साथ शनि राहु केतु ग्रह या इनमे से कोई एक ग्रह सप्तम भाव या सप्तमेश पर अपना अशुभ प्रभाव डालते हो तब मांगलिक योग अधिक प्रभावी हो जाता है।
🔸मांगलिक दोष निवारण या उसका अशुभ प्रभाव दाम्पत्य जीवन पर अशुभ न पड़े इसके कई अन्य शुभ योग होते है जो मंगल के अशुभ प्रभाव को दाम्पत्य जीवन पर निष्प्रभावी करते हैं 👇🏼👇🏼 जै
🔹सप्तम भाव पर गुरु की दृष्टि मंगल के अशुभ प्रभाव को नष्ट करती है।
🔹गुरु की दृष्टि या युति मंगल से होने पर मांगलिक योग भंग हो जाता है।
🔹सप्तमेश शुभ ग्रहों के प्रभाव में हो तथा जीवनसाथी का कारक पुरुष की कुंडली में शुक तथा स्त्री की कुंडली में गुरु शुभ और बली अवस्था में हो तथा मंगल के अतिरिक्त किसी अन्य पाप ग्रह का प्रभाव सप्तम भाव पर न हो तब मांगलिक योग का अशुभ प्रभाव वैवाहिक जीवन पर नही पड़ता।
🔹सप्तमेश कोई शुभ ग्रह हो और सप्तम भाव में बेठा हो और जीवन साथी का कारक ग्रह पुरुष की कुंडली में शुक्र तथा स्त्री की कुंडली में गुरु शुभ और बलबान हो तब मंगल का अशुभ प्रभाव नष्ट हो जाता है।
ये तो रही मांगलिक योग की बात अब प्रश्न यह उठता है क्या मंगल ही इतना अशुभ प्रभाव वैवाहिक जीवन पर डालता है और कोई पाप ग्रह नही❓
ऐसा बिलकुल भी नही है अन्य किसी भी पाप ग्रह का अशुभ प्रभाव सप्तम भाव और सप्तमेश पर हो और शुभ ग्रहों का प्रभाव सप्तम भाव और सप्तमेश पर न हो तब यह अन्य पाप ग्रह भी वैवाहिक जीवन के लिए उतने ही अशुभ फलदायक होते है जितना मंगल।
🔸सप्तमेश और विवाह के कारक ग्रह गुरु-शुक्र बलवान हो और शुभ स्थिति में हो।तब एक की कुंडली मांगलिक हो और दूसरे की कुंडली मांगलिक न हो तो वैवाहिक जीवन की हानि तब तक नही होती जब तक सप्तम भाव या सप्तमेश या दोनों पर कम से कम मंगल के साथ-साथ किसी अन्य पाप ग्रह का प्रभाव सप्तम भाव और सप्तमेश पर न हो। इस कारण बिना मांगलिक वाली कुंडलियो में भी अन्य शुभ अशुभ योगो का विचार दाम्पत्य जीवन के लिए किया जाना आवश्यक है।

🙇#जयश्रीसीताराम🙇

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By Hastamudraexpert

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