Jay Sita Ram Mantra
The Sita Ram Mantra is a wonderful mantra that is beyond the limitations of space, time and purity. Ram is the all Omnipresent Consciousness, within and without us and Masculine Energy. Sita is the Shakti of Universe, the Power and the Feminine Energy. She is the Kundalini Shakti and Ram is Truth & Virtue, the Super Consciousness with whom the Kundalini Shakti merges to give enlightenment and experience of merger of self with the Cosmic Power.
In Hinduism, Ram is considered as ‘MarayadaPurushottam’, the perfect man, and Sita his consort is the perfect example of womanhood. Both exemplify the heights of perfection a human being can achieve.
Ram is bija mantra of the Manipur chakra or Solar Plexus. Chanting the Sita Ram ignites the inner fires which cleanses all physical, mental and karmic impurities. The Will to work & achieve and Wisdom to take the right path to do so, develop with the chanting of Sita Ram. Sita born of Mother Earth represents the Muladhara Chakra. She is the Earth element in our systems. She is also the Kundalini Shakti residing in the Muladhara Chakra. Chanting the Sita Ram grants us health, wealth and abundance in life which are the blessings of the Muladhara Chakra or Sita
The constant chanting of the Sita Ram Mantra brings us in touch with our spiritual roots and increases our longing for God. The inner chant of SitaRam vibrates all the nadis and chakras of the system bringing about cleansing and harmony in the systems. The vibration releases all the toxins from out body and beings equilibrium to the imbalances in our body. As we chant, we experience a deep state of peace and relaxation. Regular chanting dissolves habitual stresses and tensions. Our negative karma burn and dissolve and our inner bliss begins to blossom in us. Those who chant SitaRam consistently and in a disciplined manner find exuberant vitality and bliss engulfing them. Bhakti or love for God increases. The ego melts away and vanishes. We live in this world performing their normal duties yet in inner peace and ecstasy.
Sita is negative and feminine aspect and Ram is positive and masculine aspect of Godhood. When SitaRam mantra is chanted the feminine and masculine aspects of self are balanced. The yin and yang remain balanced and steady. Both sides of the brain are balanced. This helps to still the monkey mind, the mind becomes calm and gradually the senses come under control. This brings about a wholesome development of personality and character. We become one in thought, word and deed. What we think, we speak and do. There is integration of thought, word and deed in self. There is steadfastness in behaviour and character. We become straightforward and sincere. The potential in self blossoms and develops to fullest. SitaRam brings about progress and prosperity in both material and spiritual worlds.
The vibrations of SitaRam form a strong cover, & shield, which protects us from the negativity around us. We are protected from all evil, psychic attacks and possible harms.
The power and vibration of SitaRam mantra changes a person in entirety. The peace and inner bliss reflect on the face as tejas or spiritual glow. The improved physical and mental health, balance, prosperity, improved relationships, the connection with inner self and God bring about fulfilment in life.
सीता राम मंत्र एक आश्चर्यजनक मंत्र है । जो अंतरिक्ष, समय और शुद्धता की सीमाओं से परे होता है । राम सर्वत्र सर्वव्यापी चेतना, हमारे अन्दर एवं बाहर और पौरुष उर्जा हैं । सीता ब्रम्हाण्ड की शक्ति और स्त्री उर्जा है । वह (सीता ) कुण्डलिनी शक्ति हैं और राम सत्य एवं सदाचार हैं, अन्तः चेतना हैं , जिसमें लौकिक सत्ता से स्वयं को समाहित करने का अनुभव और प्रबोधन देने के लिए कुण्डलिनी शक्ति समाहित होती है । हिन्दू परम्परा में राम ‘ मर्यादा पुरुषोत्तम ‘ सर्वोत्तम व्यक्ति माने जाते हैं और सीता उनकी पत्नी स्त्री जाति की सर्वोत्तम उदाहरण हैं । दोनों का उदाहरण सम्पूर्णता की उच्चता के लिए दिया जाता है । जिसे मानव जाति प्राप्त कर सकती है । राम मणिपूरक चक्र का बीज मन्त्र है । सीता राम का जाप आंतरिक अग्नि को प्रज्वलित करता है, जो सभी शारीरिक, मानसिक और कार्मिक अशुद्धियों को साफ़ करता है । कार्य और प्राप्त करने की इच्छा शक्ति और ऐसा करने के लिए उचित मार्ग का ज्ञान सीता राम नाम के मंत्र के जाप से विकसित होता है । धरती माता से उत्पन्न सीता मूलाधार चक्र का प्रतिनिधित्व करती हैं । वे हमारी प्रणाली में पृथ्वी तत्व हैं । वह मूलाधार चक्र में विद्यमान कुण्डलिनी शक्ति भी हैं । सीता राम का जाप हमें धन, स्वास्थ और प्रचुरता जीवन में देता है जो मूलाधार चक्र या सीता का आशीर्वाद होता है । सीता राम मंत्र का नियमित जाप हमारे अध्यात्मिक मार्गों से हमें संपर्क में लाता है और ईश्वर के प्रति हमारी लालसा को बढाता है । सीता राम का आंतरिक जाप तंत्र की सभी नाड़ियों और चक्रों को तंत्रों में स्वच्छता और सामंजस्य स्थापित करते हुए स्पंदित करता है । तरंगें हमारे शारीर से विषाक्त पदार्थों को हटाती हैं और हमारे शरीर के असंतुलन में संतुलन लाती हैं । जैसे ही हम राम नाम का जाप करते हैं , हम शांति एवं विश्राम के गहरे पड़ाव का अनुभव करते हैं । नियमित जाप आदतन खिंचाव एवं तनावों को लुप्त करता है । हमारे नकारात्मक कर्म जलते और लुप्त होते हैं , और हमारा आंतरिक आनंद स्वयं में विकसित होना शुरू हो जाता है । जब हम सीता राम का नियमित एवं अनुशासित ढंग से जाप करते हैं , हम विपुल जीवन शक्ति और स्वयं को प्रदीप्त करते हुए परमानंद प्राप्त करते हैं । भक्ति या ईश्वर के प्रति प्रेम बढ़ता है । अहंकार का क्षय एवं समापन होता है । हम संसार में अपने नियमित कर्तव्यों को करते हुए प्रतीत होते हैं , फिर भी हम आतंरिक शांति एवं परमानंद में रहते हैं । सीता ऋणात्मक एवं स्त्रीत्व का पहलू हैं और राम ईश्वरत्व के धनात्मक और पुरुषत्व पहलू का पहलू हैं । जब सीता राम मंत्र का जाप किया जाता है तो स्वयं स्त्रीत्व और पुरुषत्व पहलू संतुलित हो जाता है । यिन एवं येंग संतुलित एवं स्थिर रहते हैं । मस्तिष्क के दोनों छोर संतुलित रहते हैं । यह चलायमान मस्तिष्क को स्थिर करने में सहायक होता है, मस्तिष्क शान्त हो जाता है और धीरे-धीरे विचार नियंत्रण में हो जाते हैं । यह व्यक्तित्व एवं चरित्र में उन्नति एवं पुष्टता लाता है । हम वाणी , कर्म एवं विचारों से एक हो जाते हैं । जो हम सोंचते हैं वही बोलतें एवं करते हैं । स्वयं में विचार, कर्म एवं वाणी का एकीकरण होता है । व्यवहार एवं आचरण में स्थिरता आती है । हम सरल एवं ज्ञानवान होते हैं । स्वयं में शक्ति बढ़ती है और पूर्णता विकसित होती है । सीता राम भौतिक एवं अध्यात्मिक संसार दोनों में उन्नति और सम्रद्धि लाता है । सीता राम की तरंगे एक मज़बूत कवच और ढाल बनाती है , जो हमारे चारों ओर की नकारात्मक से हमें सुरक्षित करती है । हम सभी बुराइयों, मानसिक अवगुणों और संभावित नुकसानों से सुरक्षित होते
सीताराम
जय वीर हनुमान
बीजोक्त तंत्र- वल्गा दण्डनाथा प्रयोग एवं मन:नियंत्रण क्रम
आँखों का झपकना,हमारा गुरुत्वाकर्षण बल के प्रभाव में आना,ग्रहों का अपने परिपथ पर घूमना,बहते रक्त का रुक जाना आदि आदि स्तम्भन शक्ति के कारण होता है ,और इस शक्ति की अधिष्ठात्री अष्ठमी महाविद्या माँ वल्गामुखी या बगलामुखी हैं | सम्पूर्ण सृष्टि में जो स्तम्भन शक्ति व्याप्त है,वो मात्र इन्ही की कृपा कटाक्ष से संभव है |
मैं बहुत ध्यान से इस तथ्य को सुन रही थी,जो कामाख्या पीठ के अंतर्गत आने वाले बगलामुखी पीठ पर जाने के पहले मास्टर ने मुझे बताया था,हम सभी कामाख्या यात्रा पर अन्य बहुत से गुरु भाई-बहनों के साथ थे | ये पूरा क्षेत्र विविधता और गुप्तता से युक्त है,जहाँ अत्यधिक तीव्र शक्तियों का वास है, और अपने मन से ही यहाँ अलग अलग महाविद्याओं को स्थापित नहीं कर दिया गया है ,अपितु पूर्ण सैद्धांतिक और वैज्ञानिक गणना से जब हम इन महाविद्या क्षेत्रों का और उनमे व्याप्त प्राण उर्जा के स्तर और घनत्व का अध्यन करते हैं तो आश्चर्य चकित हो जाना स्वाभाविक है | तब हमें समझ में आता है की कैसे प्रत्येक क्षेत्र में ऊर्जा का प्रकार,वेग,घनत्व,दबाव और तीव्रता भिन्न भिन्न है,और जब एक साधक पूर्ण विधान के साथ “प्राणशक्ति आकर्षण कल्प”का प्रयोग करता है तो स्वतः ही उसे इस भिन्नता का अनुभव हो ही जाता है |
उन्होंने बताया की माँ बगलामुखी का रंग और कांति वास्तव में हिरण्यवर्णां हैं,अर्थात स्वर्ण बाह्य रूप से भले ही पीत वर्ण का दृष्टिगोचर होता हो,किन्तु उसे पीला नहीं कहा जा सकता,क्यूंकि उस पीतवर्ण की चमक उसे सामान्य पीले वर्ण से ना सिर्फ पृथक ही करती है अपितु उसकी और दृष्टि और मन को आकर्षित कर उसका मूल्य भी बढाती है ,ये पीतवर्ण अंतःकरण की चेतना का विशुद्ध रंग है ,अर्थात जब हमारी चेतना पूर्ण प्रज्ञा से युक्त होती है तो उसे यही चमक युक्त पीतवर्ण प्रदर्शित करता है |बहुधा लोग यही समझते हैं की ये मात्र शत्रुओं का स्तम्भन करती है ,किन्तु लोग भूल जाते हैं की मात्र इतना कर देना ही तो इस शक्ति का औचित्य नहीं हो सकता है ,जिन दिव्य ऋषियों ने इन पराज्ञान शक्तियों से समाज को परिचित करवाया है ,भला वो मात्र इतने निकृष्ट कर्म के लिए इन पराशक्तियों का प्राकट्य क्यूँ करेंगे |वास्तविकता ये है की स्वयं के मन पर अंकुश लगा देना जिससे वो आपको बाह्य रूप से भटकाए नहीं अपितु आपको सार्थक दिशा की और अग्रसर करना ही इस महाविद्या का मूल चिंतन है |याद रखिये हमारी पूर्ण प्रतिभा तब तक विकसित नहीं हो पाती है जब तक की हमारा मन अपनी पूर्ण चेतना को उससे संयुक्त नहीं करता है |और जब तक हमारी पूर्ण प्रतिभा अन्तः शक्तियों से युक्त नहीं होगी तब तक हम उस सामाजिक,मानसिक,वैचारिक और आर्थिक रूप से उस स्तर को प्राप्त नहीं कर सकते हैं जिसके हम अधिकारी हैं | माँ बगला का मुख्य गुण है स्तम्भन करना और स्तम्भन तभी किया जा सकता है जब गति हो ,जहाँ गति ही नहीं होगी,भला वहाँ स्तम्भन कैसे संभव हो सकता है |तब यहाँ इस बात का यहाँ उल्लेख करना कैसे प्रासंगिक है,तो इसके लिए निम्न तथ्य को ध्यान से समझिए |
योग क्या है ?क्या कभी सोचा है ? नहीं ना !!
पातंजल योगसूत्र का दूसरा सूत्र इसकी भली भांति व्याख्या करता है-
“योगश्चित्तवृत्ति निरोधः”
अर्थात चित्त की वृत्तियों को रोक देना ही योग है,ना की व्यायाम करने की क्रिया को योग कहा गया है |
और यही क्रिया तभी पूर्ण होती है जब हम माँ वल्गामुखी के रहस्य को समझते हैं |मन की चंचलता को रोकना और उसे प्रेरित करना सार्थक दिशा की और जाने के लिए,यही माँ बगलामुखी की मूल क्रिया है | जब भी मन की गति नकारात्मक दिशा की और गति करती हो तब यही स्तम्भन शक्ति उसे स्थिर कर देती है जिससे अन्तः प्रज्ञा का क्षय नहीं होता है और उसकी सम्पूर्ण प्रज्ञा या ज्ञान का समन्वय उसके सकारात्मक विचार से हो सके | जब साधक सामान्य से अतिविशिष्ट भाव की और अग्रसर होता है तो यही अष्टमी शक्ति उसकी गति को अलग तरीके से स्तम्भन देती है, अर्थात जब एक बार आप बढ़ना प्रारंभ करता है तो यदि आप उस ऊंचाई से वापिस फिसलते हो तो ये अपनी कृपा से आपकी वह गति जिससे आप फिसल रहे हो,उसे स्तंभित कर देती है और साधक का फिसलना रुक जायेगा | अब आप फिसल क्यों रहे हैं ये दो बातो के कारण हो सकता है ,प्रथम तो आपकी पूर्ण एकाग्रता में कही कमी है या दूसरे आपका भाग्य आपके प्रतिकूल हो गया हो,इन दोनों ही स्थितियों में माँ वल्गामुखी साधक को स्थिरता देती है और उसे उच्चता की और अग्रसर करती है | क्या आपने कभी सोचा है की यदि आपकी मनः शक्ति पर आपका नियंत्रण हो जाये और आपकी नकारात्मकता सकारात्मकता में रूपांतरित हो जाये तो भौतिक और आध्यात्मिक जीवन में कुछ भी असंभव नहीं रहेगा |अक्सर साधक साधना करता है और साधनाकाल में उसकी सुषुम्ना मूलाधार चक्र से उठकर अन्य चक्रों के दलों में स्थित होती है,तब यदि साधना काल में प्राकृतिक विकृत्ति आने के कारण साधक को स्वप्नदोष या अन्य कारणों से अनचाहे ब्रह्मचर्य का खंडन हो जाता है तो तो वो सुषुम्ना पूर्ण ऊर्जा को वापिस मूलाधार में लाकर पटक देती है,और साथ ही जो उपलब्धि अग्र चक्र दलों या उन मूल चक्रों के जागरण से हुए हो वो भी निष्प्रभावी हो जाते हैं और आपने जहाँ से प्रारंभ किया था वही वापस पहुच जाते हैं,तब साधना करने से क्या लाभ प्राप्त होगा | किन्तु माँ वल्गा की कृपा से उन चक्र दलों तक पहुची शक्ति का वहीं स्तम्भन हो जाता है और उसके प्रभाव भी स्थिर रहते हैं,अर्थात किसी कारणवश यदि शुक्रदोष हो भी जाता है तो चक्रों के जागरण में बाधा नहीं आती है |माँ त्रिपुर सुंदरी की त्रयी शक्तियों में माँ वल्गा “दण्डनाथा”के रूप में क्रिया शील हैं और उनका पूजन इसी कामाख्या पीठ के बगलामुखी पीठ के सामने एक चट्टान पर उनके उस रूप को प्रतिष्ठित किया गया है, किसी समय तांत्रिक श्यामानंद ने उनकी प्रतिष्ठा अपनी साधनात्मक शक्ति से वहाँ की थी,और यदि उस विग्रह के सामने “दण्डनाथा वल्गा मंत्र”का मंत्र जप किया जाये तो आपको नेत्रों के समक्ष विभिन्न रंगों का तीव्रता से अनुभव होता है और अंत में मात्र पीतवर्णीय प्रकाश ही रह जाता है,जो प्रतीक होता है उस क्षेत्र में आपके मंत्र के प्रभाव का |
साधक अपने साधना कक्ष में रविवार की प्रातःकाल से पीले वस्त्रों को धारण कर इस साधना को पीले आसन पर बैठकर प्रारंभ कर सकता है ,दिशा पूर्व होगी ,गुरुपूजन,गंपतिपूजन के पश्चात श्वेत वस्त्र पर घृतमिश्रित हल्दी से एक वृत्त का निर्माण कर उसमे “ह्लीं” बीज अंकित करे,और उस बीज पर शुद्ध घृत का पीली बत्ती से युक्त दीपक प्रज्वलित करे,और उस दीपक को माँ बगलामुखी मानकर और उसे प्रज्वलित कर उसका पूजन धुप,अक्षत,पीले पुष्प,केशर मिश्रित खीर और हल्दी से करे,तत्पश्चात “दण्डनाथा वल्गा मंत्र” की ५१ माला मंत्र जप हल्दी माला से करे,ये क्रम गुरूवार तक नित्य करना है और हाँ प्रतिदिन भगवान सूर्य को अर्घ्य देना न भूले.
मंत्र- “ ऐं ह्लीं ऐं”
जप काल में ही आप अपने विचारों में हो रहे परिवर्तन को न सिर्फ महसूस कर पाएंगे,अपितु आपके संपर्क में आने वाले भी आपके विचारों और आत्मविश्वास से प्रभावित होंगे ही |
पंडित आशु बहुगुणा
9760924411