****शरीर निर्माण में सात चक्रों के माध्यम से ग्रहों व देवताओं का प्रवेश****
जैसे –जैसे मानव का शरीर बन रहा होता है,उसके अंदर सात चक्रों के रूप में
शरीर के अंगों के साथ-साथ ग्रह और देवता प्रवेश कर जाते हैं.भचक्र और मानव का सीधा सम्बन्ध हो जाता है.अर्थात परमात्मा से सीधा सम्बन्ध सात चक्रों के माध्यम से हमेशा जुड़ा रहता है.
१-प्रथम मूलाधार चक्र-
यह चक्र मानव शरीर में गुदा के पास होता है.और शरीर का यह अंग ही पूरे शरीर को संभालता है .इस चक्र का स्वामी शनि और शनि की दोनों राशियाँ मकर और कुम्भ होती हैं.यदि किसी व्यक्ति का शनि या शनि की ये दोनों राशियाँ पीड़ित हो तो वह इस चक्र के माध्यम से रोग उत्पन्न होते हैं और वह कष्ट पाता है.इस चक्र का रक्त वर्ण है.इसके चार व स श ष वर्णदल हैं.मुख्यतः इस चक्र में गणेश जी की स्थापना मानी जाती है.
प्रत्येक व्यक्ति के जन्म-कुंडली में शनि और मकर-कुभ राशि अलग-२ भाव में होती है.पीड़ित ग्रह या राशि जिस भाव में हो उस भाव में शरीर का जो भी अंग आता है उस अंग में मूलाधार चक्र के माध्यम से रोग उत्पन्न होता है.
सभी ग्रहों या राशियों को इसी माध्यम से देखना चाहिए.जो पीड़ित ग्रह या राशि जिस भाव से सम्बन्ध बना रही है उस भाव से सम्बंधित अंग में रोग उत्पन्न करेगा.
२-स्वाधिष्ठान चक्र-
यह चक्र लिंग के पास होता है.इस चक्र का स्वामी ब्रहस्पति और धनु और मीन राशि होती है.बृहस्पति संतान कारक ग्रह होता है.इसलिए संतान की उत्पत्ति में इस चक्र की विशेष भूमिका रहती है.यदि बृहस्पति या धनु मीन राशि पीड़ित होती है तो इस चक्र सम्बन्धी और सन्तान सम्बन्धी समस्या होती है.पीड़ित बृहस्पति या इसकी राशियाँ जिस भाव से सम्बन्ध बनती है उस भाव के अंग में समस्या होती है.
इस चक्र के स्वामी भगवान् विष्णु हैं.आयुर्वेद में कहा गया है कि वीर्यवान व्यक्ति ही सुखी जीवन जीता है.विष्णु भगवन के अन्दर दोहरा गुण पाया जाता है.यह स्त्री-पुरुष दोनों रूप धारण कर लेते हैं.और मोहिनी रूप का किसी को पता भी नहीं चलता है.क्योंकि शरीर में लिंग और गर्भाशय दोनों का सम्बन्ध इसी चक्र से होता है.एक बार भगवान् शकर गोपी रूप धारण करके रास-लीला में गए थे और तुरंत ही पहचाने गए.अर्थात स्त्री रूप धारण नहीं कर सके क्योंकि उनका स्वाधिष्ठान चक्र से कोई सम्बन्ध नहीं है.
३-मणिपूरक चक्र-
यह चक्र नाभि के पास होता है.इस चक्र का स्वामी मंगल व उसकी राशि मेष और वृश्चिक होती है.इस चक्र से शरीर को अग्नि प्राप्त होती है.तथा भोजन की पाचन क्रिया इसी चक्र पर निर्भर करती है.यदि मंगल या मेष या वृश्चिक राशि पीड़ित है तो यह जिस भाव से सम्बन्ध बना रहे है उन भावों के अंगों में कष्ट उत्पन्न होता है.मंगल या मंगल राशि पीड़ित रहने पर व्यक्ति की नाभि अपने स्थान से प्रायः हटती रहती है.और पाचन क्रिया ख़राब होती है.हनुमान जी की आराधना करने से इस समस्या से निजात पाया जा सकता है.
४-अनाहत चक्र-
यह चक्र ह्रदय में होता है.इसका स्वामी ग्रह शुक्र और उसकी राशि वृषभ या तुला राशि होती है.शुक्र प्रेम का कारक है.यदि शुक्र राशि पीड़ित है तो इस चक्र के माध्यम से ह्रदय रोग उत्पन्न होता है.और इसकी राशियाँ पीड़ित होकर जिस भाव से सम्बन्ध बना रही है उस अंग में पीड़ा होती है.ह्रदय रोग उन्ही लोगों को होता है जो तनाव ग्रस्त रहते हैं.अर्थात भगवान् ने जितना दिया है उसी लक्ष्मी में गुजरा करने में ही सार्थकता है.इस चक्र की अधिष्ठात्री देवी लक्ष्मी जी हैं.
हनुमान जी ,राम और सीता जी को इसलिए भी प्रिय थे क्योंकि यह मणिपूरक चक्र के माध्यम से विष्णु और लक्ष्मी जी के बीच में रहते हैं.
५-विशुद्ध चक्र-
यह चक्र कंठ में होता है.इस चक्र का स्वामी ग्रह बुध और उसकी राशि मिथुन व कन्या राशि होती है.इसलिए बुध वाणी का कारक ग्रह होता है.यदि बुध या इसकी राशियाँ पीड़ित हैं तो कंठ के साथ-२ वाणी दोष लगता है और जिस भाव से पीड़ित राशियों का सम्बन्ध होता है उस अंग में समस्या आती है.
इस चक्र के स्वामी सरस्वती जी हैं.इसीलिए किसी भी संगीत कार्य में माँ सरस्वती की आराधना की जाती है.
६-आज्ञा चक्र-यह चक्र मस्तिस्क के दोनों भोहों के बीच होता है.इस चक्र के स्वामी सूर्य और चन्द्रमा और उनकी राशि कर्क और सिंह हैं.यदि सूर्य पीड़ित हो तो दूर की रौशनी और चंद्रमा पीड़ित हो तो पास की रौशनी पीड़ित होती है.सूर्य-चंद्रमा दोनों पीड़ित होतो तो नेत्र रोग के साथ-२ मस्तिक रोग भी उत्पन्न होता है.
इस चक्र के स्वामी देवता शिव और पार्वती हैं.अतः प्रथम और अंतिम चक्र दोनों पर शिव का अधिकार है.अतः शिव ही जीवन दाता और मृत्यु दाता हैं.
७सहस्त्रधार चक्र-
हमारे सातो के सात ग्रह पहले शरीर की रचना करते हैं.फिर सात चक्रों के माध्यम से शरीर में वास करते हैं.इस प्रकार दो भचक्रों की स्थापना हुई.पहला आकाशीय ब्रह्माण्ड और दूसरा पिंडीय ब्रह्माण.दोनों ब्रह्मांडों का आपस में चुम्बकीय माध्यम से सम्बन्ध होता है.इस सम्बन्ध की वजह से ही ग्रह अपनी महादशा और अंतर दशा में मनुष्य के कर्म के अनुसार फल देते हैं.
सौजन्य: ShreeRamSharnamLovers