श्वसनी मुद्रा:
How To:- कनिष्ठा और अनामिका उंगलियों के शीर्ष को अंगूठे की जड़ से लगाएं। मध्यमा उंगली को अंगूठे के शीर्ष से मिलाएं। तर्जनी को बिल्कुल सीधी रखें।
श्वसनी मुद्रा
Benefits:-
श्वास से जुड़ा कोई भी रोग, जैसे- दमा, सांस लेने में परेशानी आदि सांस की नली में श्लेष्मा के जमने से पैदा होता है। इससे फेफड़े तक साफ हवा पर्याप्त मात्रा में नहीं पहुंच पाती और पीड़ित व्यक्ति सांस के ठीक से अंदर जाने से पहले ही सांस छोड़ देता है।
सांस संबंधी इन रोगों में श्वसनी मुद्रा बहुत कारगर है। यह वरुण मुद्रा, सूर्य मुद्रा और आकाश मुद्रा का समन्वय है। इससे श्वास नली में जमा श्लेष्मा बाहर निकल जाता है और सूजन में कमी आती है। इसके नियमित अभ्यास से सांस छोड़ते समय अधिक जोर नहीं लगाना पड़ता और धीरे-धीरे सांस के रोग पूरी तरह खत्म हो जाते हैं। श्वास के रोगियों को बायीं करवट ही लेटना चाहिए और पानी का सेवन योगाचार्य की सलाह के अनुसार ही करना चाहिए।